Gunjan Kamal

Add To collaction

यादों के झरोखे से " यकीन नही हुआ था "

दोस्तों ! हम सभी ने देखा ही था कि कोरोना की दूसरी लहर हमारे देश के लिए कितनी घातक साबित हुई थी। उस वक्त प्रतिदिन हमारे देश में बड़ी संख्‍या में नए - नए कोरोना के मामले सामने आ रहे थे। सबके मन में कोरोना का भय अपना असर करने लगा था। भय की छोटी सी चिंगारी आग का रूप ना ले लें इस कारण मैं उस वक्त न्यूज भी नहीं देखती थी, जों भी न्यूज चैनल खोलो सभी पर कोरोना ने ही कब्जा जमा कर रखा हुआ था।


दोस्तों! उसी कोरोना काल से जुड़ी हुई एक बात लेकर यादों के झरोखों के इस भाग में आप लोगों से मिलने आई हूॅं। बात कोरोना काल के एक दिन की है। उस दिन
ऐसे ही मेरे पतिदेव ने जब न्यूज चैनलों की तरफ रिमोट का  मुख किया तभी न्यूज 18 पर एक खबर आ रही थी जिसमें मैंने एक ऐसी न्यूज सुनी जिसे सुनकर यकीन करना मुश्किल हो रहा था कि क्या सचमुच में ऐसा हुआ होगा ?? 


दोस्तों! यह न्यूज जम्‍मू की थी और उस वक्त उस तिथि से एक दिन पहले की थी जिसमें दो महीने के बच्‍चे को कोरोना संक्रमण होने के बाद उसके माता-पिता उस नन्ही सी जान को अस्‍पताल में ही तड़पता और मरने के लिए छोड़कर चले गए थे और बाद में उस नन्ही सी जान की मौत भी हों  गई। कानूनी मसला होने के कारण न्यूज बोले जाने  तक बच्‍चे का अंतिम संस्‍कार भी नहीं किया जा सका था क्योंकि डॉक्‍टरों का कहना था कि बच्‍चे के साथ उसके परिजन के ना होने के कारण उन्हें 72 घंटे का इंतजार करना पड़ रहा है।


दोस्तों ! मुझे तों यकीन ही नही हो रहा था कि कोई भी माता - पिता अपने जने बच्चों के साथ ऐसा भी कर सकते हैं।  क्या यह सुनकर आप लोग को यकीन हो रहा है,  नहीं हो रहा है ना ? किसी को यकीन नही होगा और उस वक्त भी नही हो रहा था लेकिन यह अमानवीय कृत्य सचमुच में हुआ था और इसे  किसी और ने नहीं बल्कि बच्चे के माता-पिता ने ही किया था। ऐसी बातों को सुनकर ही हमारे बड़े -  बुजुर्गों के मुख से यही निकलता है कि घोर कलयुग आ चुका है और इस कलयुग में वें सभी चीजें देखने और सुनने को मिलेगी जिस पर हम यकीन नहीं कर पाएंगे।


दोस्तों ! कुछ देर के लिए मान लेते है कि उस माॅं के साथ कुछ मजबूरी रही होगी लेकिन क्या  मजबूर सिर्फ वही थी?  उस काल में तो ऐसे बहुत से लोग थे जो हालातों से मजबूर थे तो क्या सभी ने अपनों का साथ छोड़ दिया था? यह सवाल ऐसा है जिसके जवाब अलग- अलग हो सकते हैं क्योंकि यह बीमारी ही कुछ ऐसी थी जिसमें अपने, अपनों से दूर हो गए थे या दूर होने के लिए मजबूर थे। यदि मैं खुद की बात करूं तो उस दिन टी.वी पर आ रहे उस न्यूज़ को सुनकर कम से कम मैं तो यकीन नहीं कर पा रही थी कि कोई माॅं अपने नवजात बच्चे को यूं छोड़ कर जा सकती हैं। आज फिर उस घटना का जिक्र आते ही मन द्रवित हो चुका है और  हो सकता है आप में से बहुत सारे ऐसे लोग होंगे जो इस बात को जानते होंगे। अब चलती हूॅं, आगे  फिर से यादों के झरोखे में बंद ऐसी ही याद लेकर आप सभी से  मुलाकात होगी तब तक के लिए 👇


" बाय एंड गुड नाईट "


" गुॅंजन कमल " 💗💞💓


   15
6 Comments

Varsha_Upadhyay

16-Dec-2022 07:11 PM

शानदार

Reply

Renu

11-Dec-2022 03:04 PM

👍👍🥺

Reply

Muskan khan

11-Dec-2022 12:56 PM

Well done

Reply